स्मार्ट सिटी भोपाल:देश में अकेला भोपाल, जिसका एक हजारसाल पुराना डिजाइन आज भी वैसा ही है…

  • 8 months ago
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पटना, वाराणसी, मथुरा, विदिशा, उज्जैन, धार प्राचीन भारत के ऐसे शहर हैं, जो आज तक बसे हैं और इनके दो-तीन हजार साल के ज्ञात इतिहास हैं। किंतु भारत के प्राचीन शहरों में अकेला भोपाल है, जो अपने एक हजार साल पुराने मानचित्र पर गूगल मैप से आज भी हैरत में डालता है।

एक चौकोर डिजाइन, जिसमें चारों ओर हरेक सुरक्षा दीवार 660 मीटर लंबी है, हर दीवार पर 3-3 दरवाजे हैं, एक रिंगरोड है, एक खाई है, जिसमें बड़े तालाब के पानी का ओवरफ्लो डाला गया। भीतर हर सड़क एक-दूसरे को 90 डिग्री पर काटती है। आप शहर के किसी भी हिस्से में हों, आपात स्थिति में अपने निकट के दरवाजों से सुरक्षित बाहर आ सकते हैं। यह महान परमार शासक राजा भोज (1010-1055) की भोपाल को देन है।

शतरंज के डिजाइन जैसे मानचित्र पर बिल्कुल बीचोबीच जहां सबसे बड़ा चौराहा है, आज वह पुराने भोपाल का चौक बाजार है। गूगल मैप से इस चौक पर उतरकर चारों ओर बड़े ध्यान से देखिए। यह चौक राजा भोज की नगर रचना में ब्रह्मस्थान माना जाता था। पद्मश्री डॉ. कपिल तिवारी कहते हैं कि शहर के केंद्र में यह एक दार्शनिक शासक की विश्व को सबसे महान देन है कि वहां ज्ञान का केंद्र हो। ब्रह्मस्थान पर सभामंडल नाम का एक महाविद्यालय था, जिसमें अनेक विषयों के 500 विद्वान अध्यापक नियुक्त किए गए थे।

नवाब बेगम कुदसिया पर केंद्रित पुस्तक “हयाते कुदसी’ में सभामंडल के स्थान पर प्राप्त एक शिलालेख का उल्लेख है, जो बताता है कि 1151 में वह बनना आरंभ हुआ था और 1184 में बनकर तैयार हुआ था। नवाबों के समय ठीक इसी स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण 1832 में किया गया। आज भी जुमेराती गेट और पीरगेट के रूप में उन दरवाजों के बदले हुए नाम और कुछ मिटती हुई संरचनाएं मौजूद हैं। वह खाई पूरी तरह मिट चुकी है, जहां नगर की सुरक्षा दीवार के बाहर बड़े तालाब का ओवरफ्लो था। पुरातत्वविद् डॉ. पूजा सक्सेना बताती हैं कि भोजपुर से लेकर बड़े तालाब तक अनेक विशाल जलाशय भी राजा भोज ने बनवाए थे और ये एक हजार साल पुराने मानव निर्मित मॉडल आज भी सुरक्षित हैं।

इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी, एनआईटीटीटीआर और स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्ट (एसपीए) के विशेषज्ञों ने रिसर्चर संगीत वर्मा और नेहा तिवारी के पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन में पुराने भोपाल के व्यवस्थित डिजाइन को देखा तो वे हैरत से भर गए थे। एकेडमी के साइंटिस्ट प्रो. अमिताभ घोष ने कहा था कि आज के सिटी प्लानर बहुत कुछ सीख सकते हैं। यह उत्कृष्ट सिविल इंजीनियरिंग और वास्तु का एक बेमिसाल डिजाइन है। एसपीए ने तो राजा भोज की कृति “समरांगण सूत्रधार’ को अपने कोर्स में जोड़ लिया था।

एकमात्र प्रमाण, जो जमीन पर बचा…

ओल्ड जेरूशलम में मैंने देखा कि इजरायल की सरकारों ने दुनिया भर से आने वाले पर्यटकों के लिए अपने 3 हजार साल पुराने शहर और मंदिरों के मॉडल को आकर्षक पर्यटन केंद्र के रूप में एक जगह प्रस्तुत किया है। भोपाल में तो वह डिजाइन इतना स्पष्ट है कि बलुआ पत्थरों से बहुत खूबसूरती से किसी भी पार्क में बनाया जा सकता है। 56 अध्यायों और 800 पृष्ठों में डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू और प्रो. भंवर शर्मा द्वारा संपादित और अनुवादित “समरांगण सूत्रधार’ राजा भोज की वह प्रामाणिक कृति है, जिसमें महलों, भवनों और नगरों के वास्तु और निर्माण के कई अध्याय हैं।

भोपाल का डिजाइन जमीन पर बचा रह गया एकमात्र प्रमाण है। इतिहासकारों के लिए खोज का विषय है कि 300 किमी दूर अपनी राजधानी धार से भोपाल आकर राजा भोज 45 किमी लंबे क्षेत्र में इतने प्रोजेक्ट्स पर काम क्यों कर रहे थे और भोजपुर मंदिर अधूरा क्यों रह गया?

https://dainik.bhaskar.com/j6wpWuUYVLb

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