ट्रांसफरेबल डेवलपमेंट राइट (टीडीआर) रूल्स को लागू हुए 5 साल से ज्यादा बीत गए, फिर भी अब तक एक भी टीडीआर जारी नहीं किया गया है। टीडीआर जारी न होने के कारण मास्टर प्लान की प्रमुख छह सड़कों का काम भी अटका हुआ है। जानकार मानते हैं कि यदि टीडीआर की बेहतर व्यवस्था की जाए तो भोपाल की ये 6 सड़कें बन जाएंगी और इनके दोनों ओर डेवलपमेंट की संभावनाएं भी बढ़ेंगी।
मप्र में टीडीआर देने के अधिकार टीएंडसीपी डायरेक्टर को दिए गए हैं। आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और तेलंगाना में टीडीआर नगरीय निकाय ही जारी करते हैं। टीडीआर व्यवस्था को समझने के लिए टीएंडसीपी की एक टीम इन शहरों में भी गई थी। लौटकर उन्होंने अफसरों को एक रिपोर्ट सौंपी। इसमें नगरीय निकायों को ही टीडीआर जारी करने के अधिकार दिए जाने की पेशकश की गई थी।
ऐसे समझें टीडीआर… टीडीआर के तहत सड़क या किसी सरकारी परियोजना के लिए निजी जमीन का अधिग्रहण किया जाता है। इसके एवज में नकद मुआवजा देने के बजाय डेवलपमेंट राइट्स सर्टिफिकेट यानी विकास अधिकार प्रमाण पत्र दिया जाता है। यह टीडीआर सर्टिफिकेट कहां उपयोग होगा उसके लिए रिसीविंग एरिया घोषित किया जाता है। इस सर्टिफिकेट को शेयर की तरह बेचा भी जा सकता है।
सड़कों के दोनों ओर 500 मीटर का क्षेत्र डेवलप होगा
सीपीए के बंद होने के बाद शहर के मास्टर प्लान की छह सड़कों को भोपाल नगर निगम और भोपाल डेवलपमेंट अथॉरिटी दोनों ही बनाना चाहते हैं। प्लान है कि इन सड़कों के दोनों ओर 500-500 मीटर के एरिया को भी डेवलप किया जाएगा। इससे यहां रिसीविंग और जनरेटिंग के तौर पर दो क्षेत्र होंगे। जनरेटिंग क्षेत्र यानी जिस जमीन पर सड़क बनाई जाएगी, वहां टीएंडसीपी टीडीआर सर्टिफिकेट देगा। सड़क के दोनों ओर 500-500 मीटर का क्षेत्र रिसीविंग एरिया कहलाएगा, जिस पर बेटरमेंट चार्ज (सुधार कर) लिया जाएगा।
बेटरमेंट चार्ज सड़क बनाने के दौरान शहर में लागू कलेक्टर गाइडलाइन की कीमतों पर लिया जाएगा। ये अधिकतम 33% और न्यूनतम 25% तक हो सकता है। भोपाल मास्टर प्लान की कुल 231 किमी सड़कों का निर्माण होना है। भोपाल में अब तक मास्टर प्लान की सड़कों को सीपीए ही बनाता रहा है। इन सड़कों के निर्माण के लिए टीडीआर का उपयोग करने के अधिकार सीपीए को दिए गए थे।